जगद्गुरु रामभद्राचार्य दिव्यांग राज्य विश्वविद्यालय के संस्थापक और कुलपति
नाम | श्री जगद्गुरु रामभद्राचार्य |
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जन्म तिथि | 14 जनवरी, 1950 मकर संक्रांति, माघ कृष्ण एकादशी | |
जन्म स्थान | गांव- शांदीखुर्द, जौनपुर (उत्तर प्रदेश), भारत | |
परिवार | परिव्राजक वैष्णव सन्यासी | |
शिक्षा | एमए (आचार्य-नव्य व्याकरण), पीएचडी, डी.लिट | |
भाषाएं | संस्कृत, हिंदी, अंग्रेजी, फ्रेंच, भारतीय क्षेत्रीय भाषाएं जैसे- भोजपुरी, मैथिली, उड़िया, गुजराती, पंजाबी, मराठी, मगही, अवधी, ब्रज, आदि। |
कुलाधिपति सन्देश |
दिव्यांगजन, समाज एवं राष्ट्र के लिए विशिष्ट प्रकार से उपयोगी हैं। वे विज्ञान कलायुक्त नहीं अपितु विशिष्ट कला एवं दिव्यता से युक्त हैं। जगद्गुरु रामभद्राचार्य दिव्यांग राज्य विश्वविद्यालय की स्थापना इसी विचार अधिष्ठान पर की गई है। दिव्यांगजन में विभिन्न प्रकार की कलाओं का विकास करना, उन्हें वर्तमान चुनौतियों का सामना करने योग्य बनाना तथा एक सफल जागरूक नागरिक के रूप में समाज एवं राष्ट्र के समक्ष प्रस्तुत करना, यही विश्वविद्यालय का हेतु है। भारत का यह एक अभिनव प्रयोग है। परंपरागत विश्वविद्यालयों से भिन्न एक विशेष लक्ष्य को लेकर स्थापित यह विश्वविद्यालय श्लोकः "प्रगति पथ पर अवश्य हो तत्" का अनुसरण कर रहा है। अब दिव्यांगजनों के मार्ग में बाधा न बन कर, ऐसा विश्वविद्यालय का नियमित प्रयास है। विश्वविद्यालय इस नवीन सत्र से कुछ विशेष पाठ्यक्रम प्रारंभ कर रहा है, यह श्लाघनीय है। ये नवीन पाठ्यक्रम दिव्यांगजनों को, समाज एवं राष्ट्र के लिए उपयोगी बना सकेंगे, यह मुझे विश्वास है। आगामी सत्र में प्रवेश लेने वाले विद्यार्थियों के उज्जवल भविष्य के लिए, मेरा मंगलाशासन है। |
इति मंगलाशासनः! श्री राघवीय जगद्गुरु रामभद्राचार्य जीवनपर्यंत कुलाधिपति जगद्गुरु रामभद्राचार्य दिव्यांग राज्य विश्वविद्यालय |
जगद्गुरु जी द्वारा प्राप्त पुरस्कार/सम्मान | ||
2015 | पद्म विभूषण | भारत के राष्ट्रपति |
2015 | यश भारती | उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री |
2004 | राष्ट्रपति पुरस्कार | महार्षि बद्रीनाथ पुरस्कार |
2001 | महामहोपाध्याय | लाल बहादुर शास्त्री संस्कृत विद्यापीठ, नई दिल्ली |
1998 | धर्मचक्रवर्ती | धर्म संसद, शिकागो |
2003 | देवलिबेन पुरस्कार | धर्म और संस्कृति में प्रगति के लिए |
2003 | अति विशिष्ट पुरस्कार | उत्तर प्रदेश संस्कृत संथान |
2003 | राजशेखर सम्मान | एमपी संस्कृत अकादमी |
2002 | रविकुल रत्न | संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी (उत्तर प्रदेश) |
2005 | साहित्य अकादमी पुरस्कार | नई दिल्ली में भार्गव राघवीयम्, एक संस्कृत महाकाव्य पर |
2006 | बाणभट्ट पुरस्कार | संस्कृत बोर्ड, भोपाल |
2006 | श्री वाणी अलंकरण | नई दिल्ली |
गुरु जी द्वारा प्रकाशित पुस्तकें
यह बहुप्रतिभाशाली व्यक्ति हमें संस्कृत और हिंदी दोनों में मूल्यवान साहित्यिक उपहार दे चुके हैं। उनकी मौलिक रचनाओं का विभिन्न साहित्यिक रूपों में महत्वपूर्ण स्थान है, जैसे कि कविता, लेख, निबंध, उपदेश और दर्शन।
- मुखुंदस्मरण
- भारत महिमा
- मानस में तपस् प्रसंग
- परम बर्बागी जातु
- काका विदुर
- माँ शबरी
- जानकी कृपा कटाक्ष
- सुग्रीव की कुचाल और विभीषण की कर्तूत
- अरुंधति (हिंदी में एक महाकाव्य)
- राघव गीत गूंजन
- भक्ति गीत सुधा
- तुलसी साहित्य में कृष्ण कथा
- श्री गीता तात्पर्य
- सनातन धर्म-विग्रह – स्वरूप गौ माता
- मानस में सुमित्रा
- श्री रामानंद सिद्धांत चंद्रिका
- श्री नारद भक्ति सूत्रेषु राघव कृपा भाष्यम्
- श्री हनुमान चालीसा
- प्रभु करी कृपा पंवारि दिन्ही
- अष्टादश उपनिषद् भाष्य
- श्रीमद्भगवद्गीता भाष्यम्
- ब्रह्मसूत्र भाष्य
- आज़ाद चंद्र शेखर चरितम्